सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी — “Insensitive Remarks? Not Allowed!”

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर बता दिया कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए!
यौन हमलों से जुड़े मामलों में असंवेदनशील न्यायिक टिप्पणियाँ अदालतों, पीड़ितों और समाज—तीनों को हिला देती हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की के स्तन पकड़ना, कपड़े उतारने की कोशिश या पायजामे का नाड़ा तोड़ना “रेप की कोशिश नहीं” है!
अब भला इसमें और क्या रह गया?—यही तो देश भर में सवाल उठ रहा है।

“रात का समय था, इसलिए ये आमंत्रण था?” — SC ने कहा, ये कैसी Logic Factory है!

वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कोर्ट में बताया कि कई हाईकोर्ट्स में भी इसी तरह की “टिप्पणियाँ” सुनाई दी हैं। एक मामले में तो अदालत में कहा गया— “रात का समय था… यानी ये आमंत्रण जैसा था।” सुनकर कोर्ट भी पलभर को शांत, फिर बेहद सख्त।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की टिप्पणी साफ थी- “ऐसी बातें पीड़िता को ही नहीं, पूरे समाज को डरा देती हैं। कई बार तो पीड़िता को केस वापस लेने तक दबाव झेलना पड़ता है।”

राजस्थान और कलकत्ता हाईकोर्ट की घटनाओं का भी जिक्र

सुनवाई में बताया गया कि कुछ मामलों में कोर्टरूम में ही पीड़िता को अपमानजनक सवालों से प्रताड़ित किया गया। SC ने कहा कि अगर ऐसे उदाहरण मौजूद हैं तो उन्हें एक साथ लेकर देशभर की अदालतों के लिए गाइडलाइंस बनाई जा सकती हैं।

अब क्या होगा? — SC जल्द जारी कर सकता है राष्ट्रीय दिशानिर्देश

CJI ने वकीलों से अगली सुनवाई से पहले लिखित सुझाव मांगे हैं। अर्थात यह मामला मज़ाक नहीं—ये आने वाली Rulebook का blueprint बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का संकेत साफ है: “सेंसिटिविटी कोर्टरूम में ऑप्शनल नहीं… अनिवार्य है।”

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